आजादी की लड़ाई के समय का सबसे क्रांतिकारी और ओजस्वी नारा "इंकलाब जिंदाबाद" था, इसे अपनी कलम से पहली बार लिखने वाले महान शायर को हम हसरत मोहानी के नाम से जानते हैं ।
हसरत मोहानी साहब का पूरा नाम सय्यद फ़ज़ल-उल-हसन तख़ल्लुस हसरत था । वह क़स्बा मोहान ज़िला उन्नाव में वर्ष 1875 में पैदा हुए । इनके पिता का नाम सय्यद अज़हर हुसैन था । हसरत मोहानी ने आरंभिक तालीम घर पर ही हासिल की और 1903 में अलीगढ़ से बीए किया । शुरू ही से उन्हें शायरी का शौक़ था ।
1903 में अलीगढ़ से एक रिसाला (पत्रिका) उर्दू-ए-मुअल्ला जारी किया, जो कि अंग्रेजी सरकार की नीतियों के खिलाफ था । 1904 वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हों गये और राष्ट्रीय आंदोलन में कूद पड़े । 1905 में उन्होंने बाल गंगाधर तिलक द्वारा चलाए गए स्वदेशी तहरीकों में भी हिस्सा लिया । 1907 में उन्होंने अपनी पत्रिका में "मिस्त्र में ब्रितानियों की पालिसी" के नाम से लेख छापी । यह लेख ब्रिटिश सरकार को चुभ गया और मोहानी जी को गिरफ्तार कर जेल भेजा ।
उन्होंने खिलाफत आन्दोलन (1919) में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया । 1921 में उन्होंने सर्वप्रथम "इन्कलाब ज़िदांबाद" का नारा अपने कलम से लिखा । इस नारे को बाद में भगतसिंह ने मशहूर कर दिया । उन्होंने 1921 में हुए कांग्रेस के अहमदाबाद अधिवेशन में हिस्सा लिया था । हसरत मोहानी हिन्दू - मुस्लिम एकता के पक्षधर थे । उन्होंने श्रीकृष्ण की भक्ति में भी शायरी की । वह बाल गंगाधर तिलक व भीमराव अम्बेडकर के करीबी दोस्त थे । 1946 में जब भारतीय संविधान सभा का गठन हुआ तो उन्हें उत्तर प्रदेश राज्य से संविधान सभा का सदस्य चुना गया । उन्होंने अपने कलामो में हुब्बे वतनी, मुआशरते इस्लाही, कौमी एकता, मज़हबी और सियासी नजरिए पर प्रकाश डाला है ।
1947 के भारत विभाजन का उन्होंने विरोध किया और हिन्दुस्तान में रहना पसंद किया । 13 मई 1951 को मौलाना साहब का अचानक निधन हो गया । वर्ष 2014 में भारत सरकार द्वारा उनके सम्मान में डाक टिकट भी जारी किया । मौलाना हसरत मोहानी ने मोहान, उन्नाव में जन्म लेकर इस अवध की धरती को धन्य कर दिया ।
- हरिभान यादव