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आप लोगों को लगता है कि सऊदी, ईरान,तुर्की,OIC आदि इस्रायल पर अटैक कर दें,तभी समस्या का समाधान होगा।जबकि ऐसा हमेशा नहीं होता है।अगर ऐसा आप सोचते हो तो फिर हमारे यहां के TV चैनल के दलालों और आप मे कोई अंतर नहीं है और न ही आपको जियोपोलिटिक्स की समझ है।
सऊदी,तुर्की,ईरान आदि देश इस मसले को लेकर आक्रामक भी है और यथासंभव कोशिश भी कर रहें है कूटनीतिक चैनल से।
OIC में जो बातें हुईं है और सऊदी की जो कोशिश है वो ठीक है पर और दबाव बनाया जा सकता है। ओआईसी मीटिंग में टर्की ने सुझाव देकर कहा के एक इंटरनेशनल प्रोटेक्शन फ़ोर्स बनाई जाए जिससे फ़लस्तीन की हिफाज़त हो सके
इस बार फ़लस्तीन मुद्दे पर मुस्लिम दुनिया तुलनात्मक रूप से ज्यादा एकमत दिख रही है और इसका फॉयदा यह है कि फ़लस्तीन मुद्दा एक बार फिर मुख्य विमर्श में आ गया है।फ़लस्तीन के अलग देश बनने के लिए इसका हमेशा विमर्श में बने रहना जरूरी है।
पूरी दुनिया इस समाधान के लिए दो राष्ट्र सिद्धांत पर एकमत है और OIC ने इस बात को और मजबूत किया।जर्मनी सहित यूरोप ने भी यही कहा अब टाइम आ गया है कि इस समस्या के समाधान के लिए दो राष्ट्र सिद्धांत के बात को आगे बढ़ाया जाय।
चीन पहली बार फ़लस्तीन मुद्दे पर इतनी मुखरता से सामने आया है......यह बात काबिलेतारीफ है और जरूरी भी है।चीन ने USA को यह एहसास दिलाने में कामयाब रहा है कि अब नौटंकी ज्यादा नहीं चलने वाली है।
चीन लगातार सुरक्षा परिषद में इस मुद्दे पर चर्चा के लिए कोशिश कर रहा है।अमेरिका सहित सारे वीटो पॉवर और संयुक्त राष्ट्र महासभा में फ़लस्तीन को तीन चौथाई बहुमत है कि 4 जून 1967 की सीमा रेखा वाला फ़लस्तीन जिनकी राजधानी पूर्वी येरुशलम हो.......सहमत है।
इस रास्ते की रुकावट USA है जो बार बार वीटो कर देता है।अगर वीटो न करे तो फ़लस्तीन तुरंत बन जायेगा और इसरायल को यह बात माननी पड़ेगी।अब यह जिम्मेदारी सऊद एंड कंपनी की है कि अमेरिका को इसके लिए तैयार करे।
इसरायल के हित मे यही है कि जितनी जल्दी फ़लस्तीन बन जाये,उतना ही बेहतर है।नहीं तो जितना टाइम बीतेगा उतना ही उस क्षेत्र का विकास होता जाएगा और लोग इकठ्ठा होते जाएंगे।शासक वर्ग में भी धीरे धीरे यह भावना बनने लगेगी कि इस्रायल नाम का देश नहीं होना चाहिए क्योंकि जनता में यह भावना पहले से ही है और लगातार मजबूत हो रही है।