मंडल आयोग सन् 1978 में तत्कालीन जनता पार्टी की सरकार द्वारा स्थापित किया गया था । इस आयोग का कार्य क्षेत्र सामाजिक एवं आर्थिक रूप से पिछड़ों की पहचान कराना था । श्री बिन्देश्वरी प्रसाद मंडल इसके अध्यक्ष थे । मंडल कमीशन रिपोर्ट ने विभिन्न धर्मो (मुसलमान भी) और पंथो के 3743 जातियाँ (देश के 44% जनसँख्या) को सामाजिक, शैक्षिक और आर्थिक मापदंडो के आधार पर सामाजिक और शैक्षिक पिछड़ा (संविधान में आर्थिक पिछड़ा नहीं लिखा है और कमीशन आर्थिक बराबरी के लिए भी नहीं था) घोषित करते हुए 27% (क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने 50% अधिकतम का फैसला दिया था और पहले से SC/ST के लिए 22.5 % था), की रिपोर्ट दी।इस आधार पर लागू किया गया ,जो अपने आप में एक सामाजिक न्याय के वास्तविक स्वरूप को धरातल पर विरोधियों के अनगिनत विरोधों को झेलते हुए उतारा गया । अन्य पिछड़े वर्गों को उनका हक दिलाने में जिन व्यक्तियों व राजनेताओं ने अपने साहस का परिचय दिया वे कमोवेश अपने ही समाज के धुरंधरों से वर्तमान समय में पीड़ित हैं ।
1990 में तत्कालीन प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार ने जब आयोग की सिफारिशों को अक्षरसः लागू करने की घोषणा किये ,उस समय राष्ट्रीय मोर्चा सरकार को बाहर से समर्थन दे रही भाजपा ने अपनी शर्तों के साथ समर्थन देने की घोषणा कर दिया । नईदिल्ली में मण्डल आयोग की शिफारिशों को लागू किये जाने की घोषणा के विरोध में दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र राजीव गोस्वामी ने आत्म दाह कर लिया ,अस्पताल में उस समय भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने अयोध्या में राममंदिर बनाने को लेकर सोमनाथ से रथयात्रा निकालने की घोषणा किये, रथयात्रा रोकने पर सरकार से समर्थन वापस लेने की बात कहते हुए अन्यपिछड़े वर्गों के हिस्से के कोटे को चुनौती देते हुए प्रधानमंत्री वी पी सिंह को ही ललकारने लगे । उस समय बिहार के मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव, केंद्रीय मंत्री राम विलास पासवान, शरद यादव, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ,बिहार के वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, व कई बड़े व धैर्य वाले नेताओं ने प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह का साथ दिया । बिहार में लालकृष्ण आडवाणी को लालू प्रसाद यादव की सरकार ने रोक दिया उधर दिल्ली में भाजपा संसदीय बोर्ड के फैसले से राष्ट्रपति को अवगत कराते हुए समर्थन वापस ले लिया गया था, और बहुत बड़ी आबादी के हो रहे फायदे को रोकने का बहुत बड़ा कुत्सित प्रयास किया गया । कहने के लिए 52 प्रतिशत आबादी के समूह को 5 प्रतिशत के समूह ने अपने आंदोलनों से दबाने का प्रयास किया जिसे तबके पिछड़ों व दलितों के राजनेताओं ने अपने साहस से कमजोर नहीं होने दिया ,जो आवाज मुखर हुई तो उन्हीं के प्रयासों से हुई है । उनके त्याग व तपस्या और मनोबल को भुलाया नहीं जा सकता ।
इस मुद्दे के विरोधियों का तर्क है -
जाति के आधार पर कोटा आवंटन नस्लीय भेदभाव का एक रूप है और समानता का अधिकार के विपरीत है । हालांकि जाति और दौड़ के बीच सटीक रिश्ता दूर से अच्छी तरह से स्थापित है, लोकसभा और विधानसभाओं व सभी सरकारी शिक्षा संस्थानों में, ईसाई और मुस्लिम धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षण प्रदान करने का एक परिणाम के रूप में [11] जो धर्मनिरपेक्षता के विचारों के विपरीत है और विरोधी धर्म के आधार पर भेदभाव का एक रूप है ।
हालांकि रिपोर्ट 1 9 80 में पूरी हो चुकी थी, विश्वनाथ प्रताप सिंह सरकार ने 13अगस्त 1990 को बिन्देश्वरी प्रसाद मंडल के रिपोर्ट को लागू करने के अपने इरादे की घोषणा की, जिससे व्यापक छात्र विरोध हुए । इसके बाद सुप्रीम कोर्ट द्वारा अस्थायी प्रवास आदेश प्रदान किया गया, 16 नवम्बर 1 99 2 को सर्वोच्च न्यायालय ने सरकारी नौकरी में 27% आरक्षण 1 लाख रुपए की वार्षिक आय की आर्थिक सीमा के भीतर लागू किया जो 2015 में बढकर 8लाख रुपए प्रति वर्ष की आय सीमा हो गया है । इसी आयोग की रिपोर्ट के आधार पर न्यायालय ने 2006 में उच्च शिक्षा में भी पिछड़ा वर्ग के लोगों के लिए सीट आरक्षित की है ।
मुख्य सिफ़ारिशें
1. अनुसूचित जाति और जनजातियों को उनकी जनसंख्या के अनुपात में 22.5 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान है. इसके मद्देनजर अन्य पिछड़ा वर्गों को भी सभी सरकारी नौकरियों, तकनीकी और व्यावसायिक संस्थानों में 27 फीसदी आरक्षण दिया जाए.
2. समाज की मुख्य धारा से पीछे छूट गई आबादी के सांस्कृतिक उन्नयन के लिए पिछड़े वर्गों की सघन आबादी वाले इलाकों में शिक्षा की विशेष व्यवस्था होनी चाहिए. इसमें व्यावसायिक शिक्षा पर विशेष ध्यान देना चाहिए. तकनीकी और व्यावसायिक संस्थानों में आरक्षण कोटे से आए छात्रों के लिए कोचिंग की विशेष व्यवस्था की जाए.
3. ग्रामीण कामगारों के कौशल को बढ़ावा देने के लिए विशेष योजना चला कर उन्हें रियायती दरों पर ऋण मुहैया करना ज़रूरी है. औद्योगिक और व्यावसायिक कारोबार में पिछड़े वर्गों की भागीदारी बढ़ाने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा वित्तीय और तनकीनी संस्थानों का नेटवर्क विकसित किया जाए.
4. आयोग ने कहा कि समाज का पिछड़ा तबका गुजर बसर करने के लिए धनी किसानों के ऊपर निर्भर है क्योंकि इस वर्ग के पास खेती के लिए बड़े भूखंड नहीं है. इसलिए देश भर में क्राँतिकारी भूमि सुधार लागू करने की ज़रूरत है.
5. पिछड़े वर्गों के लिए कल्याणकारी कार्यक्रम चलाने के वास्ते राज्यों को केंद्रीय सहायता की ज़रूरत है.
मंडल आयोग ने पिछड़ी जातियों, वर्गों के निर्धारण के लिए सामाजिक,शैक्षिक और आर्थिक मानकों के आधार पर 11 सूचकांक तय किए थे.
सामाजिक स्थिति
1. वैसी जाति या वर्ग जिन्हें अन्य जाति या वर्गों द्वारा सामाजिक रूप से पिछड़ा समझा जाता है.
2.वैसी जाति या वर्ग जो आजीविका के लिए मुख्य रूप से शारीरिक श्रम पर निर्भर है.
3. वैसी जातियाँ या तबका जिनमें 17 साल से कम आयु की महिलाओं का विवाह दर ग्रामीण इलाकों में राज्य औसत से 25 प्रतिशत और शहरी इलाकों में दस प्रतिशत अधिक है और इसी आयु वर्ग में पुरुषों का विवाह दर ग्रामीण इलाकों में दस प्रतिशत और शहरी क्षेत्र में पाँच प्रतिशत ज्यादा है.
शैक्षिक आधार
1. वैसी जातियाँ या वर्ग जिनमें पाँच से 15 साल की आयु वर्ग में स्कूल नहीं जाने वाले बच्चों की संख्या राज्य औसत से कम से कम 25 प्रतिशत अधिक हो.
2. इसी आयु वर्ग में जिन जातियों या वर्गों के बच्चों के स्कूल छोड़ने का प्रतिशत राज्य औसत से कम से कम 25 प्रतिशत है.
3. वैसी जातियाँ, वर्गों जिनमें मैट्रिक परीक्षा पास करने वाले छात्र-छात्राओं का प्रतिशत राज्य औसत से 25 प्रतिशत कम है.
आर्थिक आधार
1. वैसी जातियाँ, वर्गों जिनमें औसत पारिवारिक संपत्ति मूल्य राज्य औसत से 25 प्रतिशत कम है.
2. ऐसी जातियाँ, वर्ग जिनमें कच्चे घरों में रहने वालों की संख्या राज्य औसत से कम से कम 25 प्रतिशत कम है.
3. ऐसे इलाकों में रह रही जातियाँ, वर्ग जिनमें 50 फीसदी परिवारों को पेयजल के लिए आधा किलोमीटर से दूर जाना पड़ता है ।
बिहार में भाजपा के सहयोग से सरकार चला रहे नीतीश कुमार ,उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या, ने बी पी मंडल को उनकी जयंती पर उन्हें याद किया ,अफसोस होता है नीतीश कुमार उसी धरती के लाल हैं जहाँ पिछड़ों के मसीहा बी पी मण्डल की राजनीतिक कर्मभूमि रही है । 2014 से पिछड़ों व दलितों के ऊपर सामाजिक व आर्थिक विषमता के आधार पर जो कुठाराघात हो रहा है,उसकी जबाबदेही के लिये क्या वे जिम्मेदार नहीं हैं । अभी हाल ही में neet से 27 प्रतिशत आरक्षण को खत्म कर दिया गया था लेकिन भाजपा के ही कुछ पिछड़े बर्ग के नेताओं ने प्रधानमंत्री का ध्यान इस तरफ दिलाया तब जाकर आरक्षण बच सका है । यह सत्य है कि वर्तमान सरकार पिछडों की सहमति से ही बनी है,परंतु भेदभाव अपने चरमसीमा पर है । उच्च शिक्षा संस्थानों में कहीं कहीं पिछड़े वर्ग शून्य हैं, उनका शोषण व दोहन उनके लिए आरक्षित पदों पर किया जा रहा है, बेरोजगारीऔर मंहगाई ने पिछड़े वर्गों में मध्यम वर्ग को समाप्त कर दे रहा है, अंधविश्वास, जादू , टोने, में पिछड़ा वर्ग ठगी का शिकार है उसके आत्मविश्वास को तोड़ दिया गया है ।
आइये सामाजिक न्याय के सिद्धांतों को साथ लेकर चलें और बी पी मंडल को याद करें, उनके त्याग और बलिदान को न भूलें, बिना किसी संसाधन के उन्होंने पूरे देश में घूम कर इस रिपोर्ट को तैयार किया था, जिस रिपोर्ट को लागू करने में 10 बरस लग गए, उसे सरकारी संस्थाओं को क्रैश करके बड़ी चालाकी व बुद्धिमानी से खत्म किया जा रहा है, 1990 के बाद पैदा हुई वे संतानें जो बी पी मंडल को भूल गए, अपने नेताओं के योगदानों को भूल गए, लेकिन याद रखना जब इतिहासकार अपनी लेखनी 2014 के बाद कभी लिखेगा तो तुम्हारी ही आने वाली पीढियां प्रश्न पूँछकर तुम्हें धिक्कारेंगी । अन्यपिछड़े वर्गो को उनकी आर्थिक स्थिति को ऊंचा उठाने, उन्हें समाज की मुख्यधारा में लाने के लिए हमारा छोटा प्रयास ही एक प्रयोग हो, इस प्रकार की प्रचंड विचारधारा को प्रकाशित करने की आवश्यकता है ।
- गुलाब चंद्र यादव, संपादक परिधि न्यूज़ हिंदी समाचार पत्र, अम्बेडकर नगर ।