"कोरोना" का नाम एक भयावह त्रासदी के रूप में दुनिया के इतिहास में दर्ज होगा, पिताजी मेरे बचपन मे बताते थे कि कैसे उन लोगो के बचपन मे प्लेग व कालरा रोग असाध्य था और लोगो की बेशुमार मौतें होती थीं । वह समय भी आज जैसा नही था क्योंकि न तब अपना देश आजाद था और न दुनिया विज्ञान के क्षेत्र में इतनी समुन्नत ही थी पर आज तो हम खुद को यह कहते हुये गौरवान्वित होते हैं कि हम आजाद भी हैं और विज्ञान तरक्की पर भी है लेकिन फिर भी लाशें जलाने को जगह कम पड़ रही है, नदियों में लाशें अटी पड़ी है, जज बेटा पिता की लाश लेने से इनकार कर रहा है, मतलब हमारा पूरा सिस्टम इस कोरोना के समक्ष नतमस्तक है, ऐसे में हम करें क्या ?
कोरोना के कहर ने लगभग सबको हिला कर रख दिया है ।देश की आजादी और तरक्की के बावजूद हम बेदम हैं इसके समक्ष ऐसे में खुद को सुरक्षित रखने का यत्न खुद ही करना है जिसके लिए हम घरों से कम से कम निकलें, गर्म पानी का परमानेंट सेवन करें,थोड़ा भी कम्प्लिकेशन हो तो चिकित्सक से परामर्श लें, लोग अपने मांगलिक या दुःखद कार्यक्रमो में कम से कम लोगो को आमंत्रित करें या हिस्सा लें, मास्क का प्रयोग अवश्य करें जैसे नुस्खे ही प्रभावी हो सकते हैं जैसे प्लेग व कालरा के लाइलाज रहते वक्त हमारे पुरखे करते थे ।
चौधरी अजित सिंह जी(पूर्व केंद्रीय मंत्री), डॉ मनराज शास्त्री जी(पूर्व प्राचार्य व शिक्षाविद), अंतरराष्ट्रीय साइकिलिस्ट हीरालाल यादव जी, दाऊ जी गुप्त जी(पूर्व मेयर-लखनऊ), शहाबुद्दीन जी(पूर्व सांसद), सुरेंद्र यादव जी(पूर्व सांसद) आदि की मौत सहित कई दर्जन प्रियजन इस कोरोना की भेंट चढ़ चुके हैं । सोशल मीडिया खोलते ही केवल मौतों की खबर मन-मस्तिष्क को विचलित कर दे रही है फिर भी हम सबको सकारात्मक सोच के साथ दुनिया के साथ चलना व जीना है । ऐसे में बस सुरक्षित रहने का प्रयत्न,हिम्मत और हौसला ही एकमात्र औजार है । एक दूसरे को जागरूक करते हुये कोरोना को मात देना है, यही संकल्प लें और अपने-अपने स्वास्थ्य पर ध्यान रखें ।
-चन्द्रभूषण सिंह यादव